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Showing posts from September, 2018

मुरझाए देवी देवताओं, आवाहन कबूल हो

मुरझाए देवी देवताओं, आवाहन कबूल हो... सर्वव्यापकता ही तो ईश्वर की खूबी है। हर जगह, थल में नभ में, जल में। आकाश में, पाताल में, उभयाचल में। जहां देखो, वहां सर्वव्यापी ईश्वर जी साक्षात विराजमान हैं। आकाशगंगा और धरती के कण कण में व्यापकता नजर आती है। कितनी आश्चर्यजनक बात है न, इस तुच्छ धरती पर सर्वशक्तिमान जगतपिता ईश्वर को भी गढ़ा गया है। संसार बनानेवाले की रचना भी तो कोई आम नहीं, खास नहीं, बल्कि कोई जन्मजात मुख से पैदा होनेवाला एकमात्र खास तबका ही तो कर सकेगा न, सो यह काम वह बखूबी करता ही आ रहा है। तभी तो आज तक अनवरत भगवानों को गढ़े जाने का क्रम अविरत चल ही रहा है। थमने का नाम नहीं ले रहा। कहते हैं, खुद जगत की रचना करनेवाले भगवान जी ने ही आशीर्वाद दिया है। आज भगवान जी कोमा में हैं। मंदिरों में बूत बने हुए हैं। मुरझाए देवी देवताओं, आवाहन कबूल हो- जागिए। नहीं तो बाजार में कोई नया देवता पैदा हो जाएगा। हाल फिलहाल कोई नया देवता पैदा नहीं हुआ है बुद्ध के बाद।     देखिए न इस चराचर जगत में आम लोग मानव वह भी किसी स्त्री योनि से ही पैदा होते हैं, इसलिए उनमें ज्ञान और बुद्ध...

...और जिंदा हो उठी कार्यकर्ता की आत्मा

...और जिंदा हो उठी कार्यकर्ता की आत्मा " गरीबों की आवाज बुलंद करनेवाले.....  गरीबों के दिलों में बसने वाले लोकप्रिय उम्मीदवार अपने साहेब जी को पूर्ण बहुमत से विजयी करें..." हर घर में इक मंदिर है हर मूरत में साहब हैं...। जीतेंगे भई जीतेंगे... साहब जी अपने जीतेंगे...। जीतेंगे भई जीतेंगे... साहब ही तो जीतेंगे... जी हां, चुनाव आते ही, गली गली, मुहल्ले मुहल्ले तक में नारों की झड़ी लग जाती है। गांव से लेकर शहर तक में चुनावी रंग एक जैसे ही तो होते हैं। कार्यकर्ताओं का जोश समर्थकों की भीड़। सब एक ही जैसी तो होती है। चुनावी घोषणा के लिए नारे लगाने वाली उस भीड़ में भी एक ऐसा इंसान होता है, जिस पर सभी कार्यकर्ता भरोसा करते हैं। उसी पर भरोसा कर के तो इतनी भीड़ जुटती रही है हर चुनाव में, हर जुलूस में। चुनाव आते ही दिन भर पैरों में मानों चरखी फिट कर दी जाती है। एक दिन में ही पाच- छह गांवों की सभाओं को निपटाने की ताकत तभी तो आती है। मतदान का दिन जैसे जैसे नजदीक आता है, कार्यकर्ताओं का जोश भी उतना ही बढ़ता चला जाता है।  गांव गांव में बूथ का इंतजाम करना, मतदाता सूचियों को अपडेट क...

गिरने की होड़ लगी है, कौन कितना गिरता है...

गिरने की होड़ लगी है, कौन कितना गिरता है... तो नसीब वाले बापजी के अंडभक्तों, बधाई हो।  कोई सड़क छाप जुआरी भी नहीं हैं। रिपुटेड लोग हैं भाई। पहले राजा महाराजा लोग खुलेआम जुआ खेलते हैं, अब कंपनियों की ओर से दलाल खेलते हैं। कारपोरेट जगत की ओर से मंत्री नेता दलाली करते हैं, चाल चलते हैं। बधाई हो। देश का राष्ट्रीय रुपया लगातार गिर रहा है। कभी रुपये की साख की तुलना दिल्ली सम्राट की साख से की जाती थी। आज नहीं की जाती, सबको डर है, गर चूं की तो सरकारी तोता रगड़ कर रख देगा। अब तो सरकारी तोते की कई प्रजातियां ईजाद कर ली गई हैं।       तो अंडभक्तों, बधाई हो। इतनी महंगाई में भी पेटरोल - डीजल तुम्हारे घरों में 30 रुपए की दर से ही मिल रहे हैं। भई, खूब मजे ले लेकर विरोधियों को चिढ़ा रहे हो। इधर, रुपया भी तुम्हारे बाप जी की तरह लगातार नीचे गिरती जा रही है। दोनों में होड़ लगी है, कौन कितना नीचे गिरता है।        तुम्हारे बापजी ने तो साढ़े चार साल में डबल सेंचुरी लगा दी है भाई तमाम तरह की घोषणाओं कर कर के। और रुपया और पेटरोल डीजल भी शतक बनाने के करीब है। इस लिह...

मानसिक रूप से गुलाम क्या विद्रोह करेगा...

मानसिक रूप से गुलाम क्या विद्रोह करेगा... आज का जो माहौल है और जो हालात पैदा किया जा रहा है, उसे देखते हुए लग रहा है कि जो सत्ता में बैठे लोग हैं, वे खुद ही नहीं चाहते कि कोई दबा कुचला वर्ग उसके खिलाफ जाए, उसकी आज्ञा का उल्लंघन करे। वह रोटी बोटी और नोटों के बंडल फेंक कर ऐसे लोगों को साम दाम दंड भेद से गुलाम बनाये रखना चाहता है। इसी लिए शिक्षा की बुनियाद को ही खोखला कर दिया जा रहा है। मानसिक रूप से गुलाम क्या विद्रोह करेगा। सवर्ण वर्ग तो पहले से ही शासक रहा है, लेकिन बाद में जो पिछड़े, ओबीसी और दलित वर्ग से थोड़ा बहुत नेतृत्व उभरा और सत्ता में भागीदार हुआ है, उसने भी अपना ही स्वार्थ साथा।     तो पढ़ लिख कर जो यह दलितों व पिछड़ों का उंगली पर गिनने लायक वर्ग पैदा किया गया है न यह अब कुलीन अभिजात्य सवर्ण लोगों के समुदाय में शामिल होने की भरसक कोशिश में लगा हुआ है। लेकिन चालाक सवर्ण समुदाय जो है, वह ऐसे लोगों का भलीभांति अपने हित के लिए उपयोग कर ले रहा है। यह चाल नव सवर्ण वर्ग के दलितों को शायद नहीं पता। इनकी हालात पाकिस्तान के उन मुजाहिदों की तरह हो गई है, जिसे पाकिस्तान का उच्...

एक खत बच्चों के नाम...

अपना दायरा बढ़ाते बढ़ाते अपनों से दूर हो जाते हैं बच्चे... प्रिय बच्चे, यह पत्र (मोबाइल मेसेज) रात को 2 बजे एक बाप अपनी बेटी / अपने बेटे के लिए लिख रहा है। कृपया पूरा पढ़ लेना। फिर ठंडे दिमाग से सोचना। आज के बच्चे खुद पर और अपने दोस्तों पर ज्यादा और अपने पैरेंट्स और भाई बहनों पर कम विश्वास करते हैं। दोस्त जितने जरूरी हैं, उतना ही ज्यादा जरूरी है परिवार। परिवार मां बाप, भाई बहन से ही बनता है। रिश्तेदारों पड़ोसियों से बनता है समाज। हमारा समाज जितना बड़ा होगा, उतना ही बड़ा हमारा खुद का दायरा भी बड़ा होगा, सोचने समझने की काबिलियत भी बढ़ेगी। लेकिन बच्चे अपना दायरा बढ़ाते बढ़ाते बच्चे कब अपने परिवार से, अपने मां बाप और भाई बहन से दूर हो जाते हैं, पता ही नहीं चलता। अपने परिवार को बचाए रखना।      मां बाप के लिए बच्चे ही एकमात्र सहारा होते हैं। दुनिया के सब मां बाप की एक ही इच्छा होती है कि उनके बच्चे पढ़ लिख कर स्वावलंबी बनें और बेहतर जिंदगी जियें, एक सफल इंसान बनें। मां बाप ने अपने जीवन मे जो तकलीफें झेली हैं, जो दुःख सहे हैं, जो गलतियां की हैं, उससे उनके बच्चे सबक लें और लापरवाही ...
कहां कहां भटकोगे... कहा न, हम आपको मंदिर दे सकते हैं, मस्जिद दे सकते हैं, चर्च गिरिजाघर दे सकते हैं। हमारे ईश्वर, उनके अदृश्य खुदा और गॉड के मैसेंजर क्राइस्ट उसमें निवास करते हैं। जब मंदिर मस्जिद गिरिजा में ईश्वर खुदा गॉड मैसेंजर खुद ब खुद निवास करते हैं, तो यहां वहां भटक के का कर लोगे। आखिर पढ़ लिख कर क्या कर लोगे। इन भगवानों को, जिन्हें हमने गढ़ा है, उनकी देखभाल कौन करेगा। पूजा तो हम और हमारे लोग कर ही लेंगे, लक्ष्मी जी और चढ़ावा का बंटवारा भी कर लेंगे, तुम्हें भी तो हिस्सा मिलेगा न। चलो मान भी लो, पढ़ लिख भी गए, तो क्या गारंटी है, तुममें ज्ञान विवेक का झरना ही फूट पड़ेगा। तुम सीधे हमारी कुरसी पर विराजमान हो जाओगे। तुममें से कितने पढ़ लिख लेंगे। सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि फिर तुम्हें नौकरी कौन देगा। कौन करेगा भरण पोषण। कितना संघर्ष करोगे। किस किस से लड़ाई करोगे।    सुनो, चुपचाप बात हमारी मान लो। हमारे गढ़े हुए भगवानों की शरण मे चले आओ। पूरे 33 करोड़ हैं। कहीं न कहीं पेट भर ही जावेगा। क्या चाहिए तुम्हें। नहीं मानोगे तो सुन लो। कान खोल के, गांठ बांध लो। हमने शिक्षा में ही घुन लगा दिय...