मुरझाए देवी देवताओं, आवाहन कबूल हो
मुरझाए देवी देवताओं, आवाहन कबूल हो... सर्वव्यापकता ही तो ईश्वर की खूबी है। हर जगह, थल में नभ में, जल में। आकाश में, पाताल में, उभयाचल में। जहां देखो, वहां सर्वव्यापी ईश्वर जी साक्षात विराजमान हैं। आकाशगंगा और धरती के कण कण में व्यापकता नजर आती है। कितनी आश्चर्यजनक बात है न, इस तुच्छ धरती पर सर्वशक्तिमान जगतपिता ईश्वर को भी गढ़ा गया है। संसार बनानेवाले की रचना भी तो कोई आम नहीं, खास नहीं, बल्कि कोई जन्मजात मुख से पैदा होनेवाला एकमात्र खास तबका ही तो कर सकेगा न, सो यह काम वह बखूबी करता ही आ रहा है। तभी तो आज तक अनवरत भगवानों को गढ़े जाने का क्रम अविरत चल ही रहा है। थमने का नाम नहीं ले रहा। कहते हैं, खुद जगत की रचना करनेवाले भगवान जी ने ही आशीर्वाद दिया है। आज भगवान जी कोमा में हैं। मंदिरों में बूत बने हुए हैं। मुरझाए देवी देवताओं, आवाहन कबूल हो- जागिए। नहीं तो बाजार में कोई नया देवता पैदा हो जाएगा। हाल फिलहाल कोई नया देवता पैदा नहीं हुआ है बुद्ध के बाद। देखिए न इस चराचर जगत में आम लोग मानव वह भी किसी स्त्री योनि से ही पैदा होते हैं, इसलिए उनमें ज्ञान और बुद्ध...