कहां कहां भटकोगे...

कहा न, हम आपको मंदिर दे सकते हैं, मस्जिद दे सकते हैं, चर्च गिरिजाघर दे सकते हैं। हमारे ईश्वर, उनके अदृश्य खुदा और गॉड के मैसेंजर क्राइस्ट उसमें निवास करते हैं। जब मंदिर मस्जिद गिरिजा में ईश्वर खुदा गॉड मैसेंजर खुद ब खुद निवास करते हैं, तो यहां वहां भटक के का कर लोगे। आखिर पढ़ लिख कर क्या कर लोगे। इन भगवानों को, जिन्हें हमने गढ़ा है, उनकी देखभाल कौन करेगा। पूजा तो हम और हमारे लोग कर ही लेंगे, लक्ष्मी जी और चढ़ावा का बंटवारा भी कर लेंगे, तुम्हें भी तो हिस्सा मिलेगा न। चलो मान भी लो, पढ़ लिख भी गए, तो क्या गारंटी है, तुममें ज्ञान विवेक का झरना ही फूट पड़ेगा। तुम सीधे हमारी कुरसी पर विराजमान हो जाओगे। तुममें से कितने पढ़ लिख लेंगे। सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि फिर तुम्हें नौकरी कौन देगा। कौन करेगा भरण पोषण। कितना संघर्ष करोगे। किस किस से लड़ाई करोगे।
   सुनो, चुपचाप बात हमारी मान लो। हमारे गढ़े हुए भगवानों की शरण मे चले आओ। पूरे 33 करोड़ हैं। कहीं न कहीं पेट भर ही जावेगा। क्या चाहिए तुम्हें। नहीं मानोगे तो सुन लो। कान खोल के, गांठ बांध लो। हमने शिक्षा में ही घुन लगा दिया है। बेसिक शिक्षा को ही नष्ट कर दिया है। फिर उच्च शिक्षा को तो इतना मंहगा कर दिया है कि आगे की तुम्हारी सात पुश्तें भी न पढ़ सकेंगी। फिर ऐसी पढ़ाई का क्या काम। भीख ही मांगोगे न, मंदिर मस्जिद गिरिजा हैं न। आइये, बैठिए। यहां न बैठ सको, तो फिर धर्म मजहब के ठेकेदारों के पास चले जाइये, अपने लोगों को बहकावे में लाइये। यह भी न कर सको तो राजनीतिक पार्टियों संगठनों से जुड़ जाओ। उनके समर्थक बन जाओ। देखिए रोजी रोटी का जुगाड़ ऐसे ही होता है। अगर फिर भी न मन भरे, तो शांति चाहिए। वह केवल और केवल हमारे मन्दिरों में है, उनकी मस्जिदों में, उनके गिरिजाघरों में ही तो हैं। हम बनाने वाले, गढ़ने वाले एक ही तो हैं। दुनिया बहुत बड़ी है। कहां कहां भटकोगे।

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