एक खत बच्चों के नाम...

अपना दायरा बढ़ाते बढ़ाते अपनों से दूर हो जाते हैं बच्चे...


प्रिय बच्चे,
यह पत्र (मोबाइल मेसेज) रात को 2 बजे एक बाप अपनी बेटी / अपने बेटे के लिए लिख रहा है। कृपया पूरा पढ़ लेना। फिर ठंडे दिमाग से सोचना। आज के बच्चे खुद पर और अपने दोस्तों पर ज्यादा और अपने पैरेंट्स और भाई बहनों पर कम विश्वास करते हैं। दोस्त जितने जरूरी हैं, उतना ही ज्यादा जरूरी है परिवार। परिवार मां बाप, भाई बहन से ही बनता है। रिश्तेदारों पड़ोसियों से बनता है समाज। हमारा समाज जितना बड़ा होगा, उतना ही बड़ा हमारा खुद का दायरा भी बड़ा होगा, सोचने समझने की काबिलियत भी बढ़ेगी। लेकिन बच्चे अपना दायरा बढ़ाते बढ़ाते बच्चे कब अपने परिवार से, अपने मां बाप और भाई बहन से दूर हो जाते हैं, पता ही नहीं चलता। अपने परिवार को बचाए रखना।

     मां बाप के लिए बच्चे ही एकमात्र सहारा होते हैं। दुनिया के सब मां बाप की एक ही इच्छा होती है कि उनके बच्चे पढ़ लिख कर स्वावलंबी बनें और बेहतर जिंदगी जियें, एक सफल इंसान बनें। मां बाप ने अपने जीवन मे जो तकलीफें झेली हैं, जो दुःख सहे हैं, जो गलतियां की हैं, उससे उनके बच्चे सबक लें और लापरवाही से बचने की कोशिश करें।

     एक पैरेंट होने के कारण कभी डांट फटकार दिया जाता है तो उसका बुरा नहीं मानना चाहिए बेटी / बेटा। कोई भी मां बाप दूसरों के सामने हमेशा अपने बच्चों की बड़ाई ही सुनना चाहता है। हमेशा अपने बच्चों का बखान करता है। इसलिए जब मां बाप दूसरों के बच्चों से तुलना करते हैं, तो उसका केवल एक ही मकसद होता है कि उनके बच्चे भी अपने जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा ले सकें। इसमें चिढ़ने या नाराज होने की कोई बात नहीं है।

     जब हमारे अपने घर में बाहर का दूसरा कोई व्यक्ति या मेहमान आता है तो वह भी तुम लोगों को लेकर अपने बच्चों की तुलना करता है कि देखो फलाने के बच्चे शहर में रहकर अच्छा पढ़ रहे हैं, अच्छा संस्कार सीख रहे हैं। वे तुम लोगों से ही सीखते हैं और आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं। खुद में बदलाव लाते हैं। यह एक सामाजिक प्रक्रिया है। इसे बस समझने की जरूरत है।

    बेटी / बेटा, मैंने जो अनुभव लिया है जिंदगी से वह बताता हूं। कारपोरेट जीवन में अब एक ही नौकरी पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। कारपोरेट जगत की चुनौतियों से निपटने की कला विकसित करो। कंपनियां अब टारगेट बेस हो चुकी हैं। मैन पावर उनके लिए बहुत जरूरी है, जज्बात की कोई कद्र नहीं है आज के जीवन मे। समय बहुत बदल गया है। कंपनियों के तौर तरीके भी बदल गए हैं। हर जगह बस मशीन की तरह जीते जाओ, काम करते जाओ। कामयाबी पाने, जीवन में आगे बढ़ने और अपनी मंजिल पाने के लिए कड़ी मेहनत व लगन जरूरी है। पढ़ना और एक्जाम देना भी उतना ही जरूरी है। बिना पढ़े, बिना अपडेट रहे जीवन में सफलता नहीं मिलती। ध्येय बड़ा होना चाहिए, परीक्षा के बिना उसे हासिल भी तो नहीं किया जा सकता।

      एक बेटी अपने मां बाप के लिए हीरा होता है। जैसे डायमंड बहुत कीमती होता है। लेकिन हल्का सा दाग उसकी कीमत को घटा देता है, भाव गिरा देता है। बिना फिनिशिंग वाला हीरा भी वैल्यू को कम कर देता है। इसलिए उसे संभाल कर रखना होता है। जतन करना होता है। बेटियां घर की डायमंड होती हैं। प्योर हीरा, बेशकीमती हीरा। लेकिन बेटों के साथ ऐसा नहीं होता है। पत्थर होते हैं। उन्हें हथौड़ा मार मार कर ही तराशा जाता है, तब पत्थर की मूरत आकार लेती है। हमारा समाज दोधारी तलवार की तरह मार करता है। इससे बच कर, संभलकर रहना सीखो।



     बेटी / बेटा, तुम समझदार हो चुकी / चुके हो। माता पिता गलत नहीं होते। इसलिए चिढो मत, उनसे बात करो। अपने भाईयों बहनों से बात करो। बात करने से मन हल्का होता है। परिवार जितना केयर कर सकेगा, उतना दुनिया का कोई भी व्यक्ति या रिश्ता नहीं कर सकता। इसलिए अपना दायरा तो बढ़ाओ, लेकिन अपने निकट के लोगों का भी सम्मान करो। अपने परिवार की इज्जत करो। आशा है तुम मेरी बात समझ गयी होगी / समझ गए होंगे।

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