मानसिक रूप से गुलाम क्या विद्रोह करेगा...
मानसिक रूप से गुलाम क्या विद्रोह करेगा...
आज का जो माहौल है और जो हालात पैदा किया जा रहा है, उसे देखते हुए लग रहा है कि जो सत्ता में बैठे लोग हैं, वे खुद ही नहीं चाहते कि कोई दबा कुचला वर्ग उसके खिलाफ जाए, उसकी आज्ञा का उल्लंघन करे। वह रोटी बोटी और नोटों के बंडल फेंक कर ऐसे लोगों को साम दाम दंड भेद से गुलाम बनाये रखना चाहता है। इसी लिए शिक्षा की बुनियाद को ही खोखला कर दिया जा रहा है। मानसिक रूप से गुलाम क्या विद्रोह करेगा। सवर्ण वर्ग तो पहले से ही शासक रहा है, लेकिन बाद में जो पिछड़े, ओबीसी और दलित वर्ग से थोड़ा बहुत नेतृत्व उभरा और सत्ता में भागीदार हुआ है, उसने भी अपना ही स्वार्थ साथा।तो पढ़ लिख कर जो यह दलितों व पिछड़ों का उंगली पर गिनने लायक वर्ग पैदा किया गया है न यह अब कुलीन अभिजात्य सवर्ण लोगों के समुदाय में शामिल होने की भरसक कोशिश में लगा हुआ है। लेकिन चालाक सवर्ण समुदाय जो है, वह ऐसे लोगों का भलीभांति अपने हित के लिए उपयोग कर ले रहा है। यह चाल नव सवर्ण वर्ग के दलितों को शायद नहीं पता। इनकी हालात पाकिस्तान के उन मुजाहिदों की तरह हो गई है, जिसे पाकिस्तान का उच्च व कुलीन तबका आज तक कबूल नहीं कर सका है। लेकिन मुजाहिदों को छोड़ भी तो नहीं सकता। क्योंकि बात वोटबैंक की है। बात सत्ता की है। कुछ टुकड़े ही तो फेंकने हैं। फेंक दी रहे हैं।
केंद्र में सत्ता की बात करें या फिर राज्यस्तर पर जो पिछड़े वर्ग से नेतृत्व उभरा है, उसी ने बहुजनों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। इनमे आपसी गुटबाजी इतनी हो गयी कि सबके व्यक्तिगत हित के हिसाब से पार्टियां बन गयी हैं। इसी में दलित और ओबीसी वर्ग लगातार पिसता जा रहा है। शिक्षा, रोजगार और मूलभूत सुविधाएं किस कदर आम जनता की पहुंच से बाहर होती जा रही हैं, पिछले एक डेढ़ दशक के विश्लेषण से स्पष्ट हो जाएगा।
एक उदाहरण से समझिए। किस तरह बेसिक शिक्षा के स्तर को समाप्त किया जा रहा है। एक तरफ सरकारी स्कूलों का बजट बढ़ाकर सीधे तौर पर सरकारी संसाधनों व विकास निधि की बंदरबांट हो रही है, तो दूसरी ओर प्रशासनिक लापरवाही के कारण राज्यों से मातृभाषा में संचालित होने वाले स्कूलों के लगातार बंद होने की खबरें भी आ रही हैं। लेकिन उसी के अनुपात में निजी स्कूलों की संख्या तेजी बढ़ रही है।
धीरे धीरे सरकारी स्कूलों का वजूद समाप्त करने की यह कोशिश लगभग दो दशक से जारी है। सरकारी स्कूलों में एक विशेष वर्ग का आधिपत्य है, जो सरकारी संसाधनों का ये केन प्रकारेण उपभोग कर रहा है, लेकिन शिक्षा के गिरते स्तर को सुधारने का कोई ठोस प्रयास नहीं हो रहा। पिछड़े वर्ग के लोगों को उच्च शिक्षा प्राप्त करना आनेवाले समय मे बड़ा ही मुश्किल हो जाएगा। शिक्षा प्राप्त करना आसान नहीं होगा, सरकारी स्कूल बंद हो जाएंगे। एक बार फिर से बड़ी आबादी को गुलाम बनाने की खतरनाक योजना बनाई जा रही है।
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