पत्थर के भगवानों से कुछ पाने की उम्मीद

पत्थर के भगवानों से कुछ पाने की उम्मीद



अब जो हालात पैदा किए जा रहे हैं उससे प्रतीत होता है कि जिसने भी थोथी किताबों का विरोध किया, जिसने भी किस्से कहानियों पर उंगली उठाई, ऐसे पढ़े लिखे लोगों को अब शहरी आतंकवादी या वामपंथी घोषित कर दिया जाएगा , किया भी जा रहा है।

 दुनिया नित नए अन्वेषण कर रही है, शोध कर रही है। प्रौद्योगिकी, विज्ञान, अंतरिक्ष, मेडिकल हर जगह अपना परचम लहरा रहे हैं। लेकिन हमारे सो कॉल्ड महान देश, जहां कभी वानर रीछ भालू गिद्ध व अन्य जानवर कभी संस्कृत बोला करते थे, हवा में उड़ सकते थे, धरती से 100 गुना प्रकाशवान गोले को, जिसे सूरज भगवान कहते हैं , उन्हें एक वानर बालक निगल जाता है, उस महान देश में इस तरह की कोरी कल्पनाओं में ही खुद को धन्य मानने की जुगाड़ लगाने में व्यस्त है।

आज हमारे महान देस का वासी पत्थर के भगवानों से कुछ पाने की उम्मीद पाले बैठा है। किसी आश्चर्य चमत्कार होने की आस लगाए बैठा है। निर्जीव पत्थरों की मूरत में आस्था ढूंढता है। इस नकली आस्था के चक्कर में न जाने कितनी लाशें बिछा दी गई हैं, न जाने कितनों का खून बहा दिया गया है।

असल में कुछ शातिर व स्वार्थी तबका पढ़े लिखे लोगो की फौज नहीं बनने देना चाहता। लेकिन वह अनपढ़ जाहिल लोगों की भीड़ जरूर पैदा करना चाहता है। इसीलिए इस शातिर तबके के लोग संविधान प्रदत्त अधिकारों को नष्ट कर देना चाहता है। वह पढ़े लिखे लोगों के विचारों को नष्ट कर देना चाहता है, ताकि बहुजन वर्ग उस विचार से अपना कुछ भला न कर सके। 

यह शातिर तबका क्रांतिकारी विचारों, सोच, लेखों को, किताबों को जला देना चाहता है, ताकि उन किताबों व लेखों को पढ़कर कोई बहुजन तबका खुद को बदलने का प्रयास न कर ले। यह शातिर तबका जागरूक व तत्वदर्शी व तार्किक लोगों को मार देना चाहता है, नजरकैद में डाल देना चाहता है, ताकि कोई बहुजन दलित सदियों से पीड़ित वर्ग कुछ सीख न ले ले। यह तबका चाहता है कि उनके पीछे भीड़ का अस्तित्व बना रहना चाहिए।

शातिर दिमाग यह जानता है कि जब भीड़ नहीं रहेगी, तो उनकी दुकान कैसे चलेगी। यह जो धर्म की, 33 करोड़ देवी देवताओं की जो दुकान सजाई गई है, वह कैसे फलेगी फलेगी। विवेकशील होते ही, चेतना जागृत होते ही भीड़ छंटनी शुरू हो जाएगी। उनका तो अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। इस तबके को विज्ञान से कोई बैर नहीं है, प्रौद्योगिकी से कोई दुश्मनी नहीं है, आईटी से कोई संकोच नहीं है, लेकिन केवल उनके और उनके करीबियों के फायदे के लिए ही होनी चाहिए।
 स्वान्तः सुखाय का साधन बहुजनों तक नहीं पहुंचना चाहिए। इसीलिए भीड़ का भयादोहन जरूरी है, भीड़ का अनपढ़ जाहिल बने रहना जरूरी है। बेरोजगार और मानसिक कमजोर बना रहना जरूरी है। भगवान व धर्म का नशा इसीलिए बढाया जाता है। धर्म का नशा नाश कर देगा बहुजनों का। पाखण्डियों को पहचानना जरूरी है। 
चेतिये।

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