नरभक्षी नक्सली कहीं की?



नरभक्षी नक्सली कहीं की?

नरभक्षी नक्सली कहीं की? हम आदम जात के बनाए गए इस कंक्रीट के जंगलों में विचरण क्यों कर रही है...यह तेरा इलाका नहीं रहा अब। देखती नहीं अब इन कंक्रीट के जंगलों में नरपशु रहते हैं । यहां आने से पहले तुझे भी डरना चाहिए था। इंसान तो क्या, भगवान-अल्लाह- गॉड भी कांपते हैं, यहां इन कंक्रीट के जंगलों में आने से पहले। फिर तू क्यों मुंह उठा कर चली आती है। आएगी तो जान से जाएगी. समझ ले...। 
          टी वन (T1) बाघिन, तुमसे ज्यादा खूंखार तो आदम जात निकला। बेशक तुम्हें खुद के ज्यादा हिंसक और नरभक्षी होने का गुमान रहा हो, लेकिन सच तो यह है कि तुमसे भी ज्यादा शातिर, घातक, हिंसक, क्रूर और नरभक्षी जीव अब इन कंक्रीट के जंगलों में पाए जाने वाले आदम जात ही हैं। देखो तो सही, इनकी मजाल। किस चालाकी से तुम्हारे ही जंगलों में, तुम्हारे ही घरों में घुस कर तुम्हारा ही कत्ल कर आते हैं। कत्ल करने से पहले निवाला भी छीन लेते हैं। 

         पहाड़ों और जंगलों को हड़प कर हजम कर जानेवाले इन आदमजात को पहचानने में टी वन (T1) बाघिन, तुम चूक गई हो। बड़ी ही चालाकी से तुम्हें घर से बेदखल कर ही तो शान से यहां कंक्रीट के गगनचुम्बी जंगलों को बोया जा सका है। हे, नरभक्षी नक्सली टी वन (T1)  बाघिन, तुम तो खुद ही शिकार हो गई हो इनका। तुम्हें अब शिकार करने का भी हक नहीं रहा है। कहां करोगी शिकार। जब जंगल ही न रहेंगे, जंगल ही न बचेंगे, तो तुम्हारे जिंदा रहने से भी क्या फायदा होगा भला। तुम नाहक ही परेशानी का सबब बनोगी, आदम जात लोगों की शांति भंग करोगी। यह ठीक बात नहीं है। देखों, तुम जब गरजती हो, तो आदम जात की शांति भंग होती है, जब तुम अपना पेट भरने के लिए चोरी करती हो, तो इनके अहं को ठेस पहुंचती है।  इनका अधिकार जाग जाता है। अधिकार के तहत ही तो सजा देने का नियम बनाया गया है। तुम यह बात ही भूल गई टी वन बाघिन।

     खैर तुम ही क्यों? धरती का मूल निवासी भी तो बेघर हो गए हैं। सदियों से आदमखोर नरभक्षी की यह जो शातिर जाति है न, मूल निवासियों के साथ अन्याय करती आई है। मूल निवासियों के घर पर पहले डाका डाला और फिर उन्हें ही बेदखल कर दिया। सोचो, भूख से बेकल होकर तुम कहाँ जाती, कंक्रीट के जंगल में आकर तुमने तो गुनाह ही कर दिया। इस गुनाह की सजा तो मिलनी ही थी। जान से हाथ धोना पड़ा न तुम्हें। यही गलती तो मूल निवासियों ने भी किया है। अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाया था। देखों तो शातिर जमात ने किस तरह उन्हें आतंकी और नक्सली घोषित कर दिया है। अब मार रहे हैं, काट रहे हैं, फंसा रहे हैं। जंगलों में रहनेवाले बाघ-बाघिनों और आदिवासियों को मारा जा रहा है, भगाया जा रहा है, फंसाया जा रहा है। 

     तो, नरभक्षी बाघिन, तुमसे ज्यादा चालाक खूंखार आदम जात है, तुम्हें याद रखना चाहिए था। तुम्हें गोली मारने से पहले बेहोश भी तो किया जा सकता था, लेकिन बेहोश करते तो तुम्हारे बघ नखों का क्या होता? तुम्हारे इन बड़े मजबूत पंजों का क्या होता, तु्म्हारी अनमोल खाल का क्या होता? तुम्हारी चमकीली आंखों का क्या होता? तुम्हें जिंदा रख कर खतरा कौन मोल लेता टी वन (T1) बाघिन। तुम्हारे जिंदा रहते, ये सब मुमकिन तो नहीं था पाना। अरे हां, बेशकीमती जंगल पर कब्जा कैसे हो पाता। तुम्हारे रहते तो यह मुमकिन न था न। आदिवासी मूलनिवासी भी तो खूंखार आतंकी नक्सली करार दे दिए गए हैं न। अब दोनों ही मरोगे, भगाए जाओगे। याद रखना इस बात को- नरभक्षी नक्सली कहीं की?

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