विकास पंगु हो गया है... धक्का देने के लिए विनाश जरूरी है...
विकास पंगु हो गया है... धक्का देने के लिए विनाश जरूरी है...
साल 2019 के चुनाव में राम मंदिर का मुद्दा अहम रहेगा। प्रधान चुकीदार के सारे विकास दावे एक तरफ और मंदिर का मुद्दा एक तरफ होगा। काश कि आज श्रीमान मिसिरा जी होते, तो राम मंदिर का निर्माण का फैसला सुना ही देते। लेकिन गोगोई जी पर असर नहीं हो रहा है शायद, वे भगवान के नाराज होने से भी नहीं डरते, तभी तो निडर होकर फैसला ले लिया और अगले साल के लिए सुनवाई टाल दिया है। हो सकता है, अगली बेंच में ही वे न हों...। शाह और स्वामी ने पहले ही चेता दिया है...ऐसा कोई भी फैसला सुको न करे, जिसको लागू ही नहीं किया जा सके। जस्टिस लोया याद हैं किसी को....। विकास पंगु हो गया है, इसे आगे बढ़ाने के लिए घटिया नेताओं की इस फौज ने अब विनाश के रास्ते पर चलने का फैसला ले लिया है। विनाश के रास्ते चल कर ही तो सत्ता सुंदरी का स्वाद चखा है। चड्ढी गैंग की सत्ता की हवश अब केवल और केवल विनाश, सांप्रदायिकता और नर संहार के रास्ते ही तो बुझेगी। ऐसा प्रतीत हो रहा है - साल 2019 का चुनाव रक्तों की नदी से गुजरते हुए लड़ा जाएगा...।
सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को अयोध्या विवाद पर होने वाली सुनवाई टल गई है। सोमवार को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की बेंच ने इस मामले को अगले साल जनवरी के लिए टाल दिया है। सुप्रीम कोर्ट अब जनवरी के पहले सप्ताह में मामले की सुनवाई की अगली तारीख तय करेगा। सीजेआई गोगोई ने इस बात को भी स्पष्ट किया है कि अयोध्या मामले में तुरंत सुनवाई नहीं हो पाएगी। जस्टिस गोगोई का यह फैसला नरसंहार को टालने के लिए सही कहा जा सकता है, लेकिन क्या इंसानों की खून का स्वाद लेकर सत्ता सुंदरी के आगोश में बैठी सरकार इसे मंजूर कर पाएगी।
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद का मामला सूची नंबर 43 के रूप में सूचीबद्ध था। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए कहा कि अब इस मामले की सुनवाई अगले साल जनवरी में तय की जाएगी। जनवरी में सुप्रीम कोर्ट यह भी तय करेगा कि सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली मौजूदा तीन जजों की बेंच ही मामले की सुनवाई करेगी या इसके लिए कोई नई बेंच का गठन किया जाएगा।
पिछली सुनवाई में तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के साथ जस्टिस अशोक भूषण और अब्दुल नजीर मामले को सुन रहे थे। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के रिटायर होने के बाद सोमवार को हुई सुनवाई में दो जज पहले से ही अलग रह गए। पिछली सुनवाई में ही सुप्रीम कोर्ट से मुस्लिम पक्षों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा था। सुप्रीम कोर्ट ने 1994 के इस्माइल फारुकी के फैसले में पुनर्विचार के लिए मामले को संविधान पीठ भेजने से इन्कार कर दिया था।
इस बीच, सरकारी खेमें में भी बेचैनी बढ़ गई है। साल 2019 के चुनाव में राम मंदिर का मुद्दा अहम रहेगा, यह पक्का यकीन हो गया है। प्रधान चुकीदार के सारे विकास दावे एक तरफ और मंदिर का मुद्दा एक तरफ होगा। सरकार मंदिर मुद्दे को भड़का कर विकास की बजाय विनाश पर ध्यान देगी। विकास के मुद्दे पर किरकिरी होने के बाद विनाश का ही रास्ता दिखाई दे रहा है...इसी रास्ते से होकर सत्ता की कुर्सी मिली है महान राष्ट्रवादी धोखेबाज पारटी को। इंसानों के खून की प्यासी दगाबाज सरकार को विनाश का रास्ता ही पसंद आता है...।
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