जांच एजेंसी की साख पर बट्टा या राजनीतिक बिछात में पिसती सीबीआई
जांच एजेंसी की साख पर बट्टा...
या राजनीतिक बिछात में पिसती सीबीआई
देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की साख एवं प्रतिष्ठा पर हमेशा से ही सवाल खड़े किए जाते रहे हैं। लेकिन जिस तरह से जांच एजेंसी के दो शीर्ष अधिकारियों के बीच आपसी लड़ाई सामने आई है, उससे जांच एजेंसी की विश्वसनीयता और भी कमजोर हुई है।सीबीआई के बारे में धारणा बन गई है कि वह राजनीतिक रूप से इस्तेमाल होती है और सरकार अपने विरोधियों को काबू में रखने के लिए उसका इस्तेमाल करती रही है। जयललिता, लालू, मायावती और मुलायम सिंह यादव की आय से अधिक संपत्ति मामले में सीबीआई की भूमिका ने इस धारणा को और मजबूत किया है। इन सबके बावजूद विगत वर्षों में इस संस्था में लोगों का भरोसा डिगा नहीं है। मामले की निष्पक्ष जांच के लिए लोग सीबीआई जांच की मांग उठाते रहे हैं। यह भरोसा ही सीबीआई की साख एवं विश्वसनीयता का आधार है लेकिन दो उच्च अधिकारियों की घूसखोरी के पूरे प्रकरण ने जांच एजेंसी की उसी साख, विश्वसनीयता एवं निष्ठा पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा और उसके विशेष निदेशक राकेश अस्थाना दोनों ने एक-दूसरे पर रिश्वर लेने के गंभीर आरोप लगाए हैं। मामला कोर्ट और सरकार दोनों तक पहुंचा, लेकिन सरकार ने जल्दबाजी करते हुए आधी रात में जिस तरह से हस्तक्षेप करते हुए आनन-फानन में सीबीआई निदेशक को छुट्टी पर भेजने का फैसला किया, उसने विपक्ष को राफेल सौदे की जांच से जोड़कर देखने का अवसर भी दे दिया है। कांग्रेस का कहना है कि सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा राफेल डील की जांच करने वाले थे और सरकार इससे घबरा गई। उसने आनन-फानन में कार्रवाई करते हुए आलोक वर्मा का अधिकार छीनकर उन्हें छुट्टी पर भेज दिया। हालांकि विपक्ष के इस दावे की पुष्टि नहीं हो पाई है। आलोक वर्मा को भी नरेंद्र मोदी का करीबी अधिकारी समझा जाता है।
तो मसला यह है कि सीबीआई के दो टॉप अफसरों में रिश्वतखोरी के मामले में आरोपों-प्रत्यारोपों का जो दौर चला है, उससे न केवल इस महत्वपूर्ण जांच एजेंसी की विश्वसनीयता ही कटघरे में आई है, बल्कि इसका किस तरह से राजनीतिक व व्यावसायिक फायदे कि लिए उपयोग किया जाता रहा है, इसका खुलासा भी होने लगा है। सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना पर पहले से ही कई गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं। ये वही राकेश अस्थाना हैं, जिन्होंने नीतीश कुमार, सुशील मोदी, एल. के. आडवाणी से मिलकर चारा घोटाले में लालू को साजिशकर्ता बनाकर गिरफ्तार कर लिया, लेकिन सरकारी राजकोष से सीधे 2500 करोड़ रुपए सृजन संस्था के अकाउंट में डालकर गबन करनेवाले मौजूदा बिहार के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को गिरफ्तार तक नहीं किया।
इतना ही नहीं, सीबीआई के इस महत्वपूर्ण पद पर बिठाए जाने से पहले तक गोधरा कांड में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह राज्य मंत्री अमित शाह को आराम से क्लीन चिट देने में भी वडोदरा और सूरत के पुलिस कमिश्नर रहे अस्थाना ने सफाई बरती थी। उसी की बदौलत, सीबीआई के इस महत्वपूर्ण पद पर अस्थाना जी को विराजमान किया गया। शायद इसीलिए सीबीआई ने अभी तक सृजन घोटाले के मुख्य दोषी को गिरफ्तार नहीं किया है और न ही गोधरा कांड, युवती के पीछा करनेवाले मामले में ही कोई गिरफ्तारी हो पाई है।
फिलहाल सीबीआई ने स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना के ख़िलाफ़ एक एफआईआर दर्ज कराई है, जिसमें अस्थाना पर मीट कारोबारी मोइन क़ुरैशी के मामले में जांच के घेरे में चल रहे एक कारोबारी सतीश सना से दो करोड़ रुपए की रिश्वत लेने का आरोप है। सीबीआई में नंबर दो की हैसियत रखने वाले राकेश अस्थाना इस जांच के लिए बनाई गई एसआईटी के प्रमुख भी हैं। कारोबारी सतीश सना का आरोप है कि सीबीआई जांच से बचने के लिए उन्होंने दिसंबर 2017 से ही अगले दस महीने तक क़रीब दो करोड़ रुपए की रिश्वत ली गई है। अस्थाना की गर्दन फंसती देख, उनकी ओर से भी निदेशक वर्मा के खिलाफ घूसखोरी का मामला दर्ज किया गया और सरकार ने इस आधार पर सीबीआई के निदेशक को छूट्टी पर भेज दिया है।
राकेश अस्थाना 1984 बैच के गुजरात कैडर के आईपीएस हैं। वह पहली बार साल 1996 में चर्चा में आए, जब उन्होंने चारा घोटाला मामले में लालू यादव को गिरफ्तार किया। दूसरी तरफ, साल 2002 में गुजरात के गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में आगजनी की जांच के लिए गठित एसआईटी का नेतृत्व भी राकेश अस्थाना ने ही किया था। इसके अलावा वह अहमदाबाद ब्लास्ट और आसाराम केस जैसे तमाम चर्चित मामलों की जांच में भी शामिल रहे हैं। राकेश अस्थाना को पिछले साल अक्टूबर में सीबीआई का स्पेशल डायरेक्टर नियुक्त किया गया था। सीबीआई में यह उनकी दूसरी पारी है। इससे पहले वह अतिरिक्त निदेशक के पद पर काम कर चुके हैं।
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